रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ें और रोज़े का कफ़्फ़ारा – Roze ko todne wali chize aur roze ka kaffara
Roze ko todne wali chize aur roze ka kaffara – रोज़े को तोड़ने वाली क्या – क्या चीज़े है और रोज़ा तोड़ने से क्या होता है, कफ़्फ़ारा क्या है और कैसे अदा किया जाता है? आप जानेंगे इस आर्टिकल में।
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ
रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों के बारे में नबी–ए–करीम की चन्द अहादीस इस तरह हैं–
- जिसने रमज़ान के एक दिन का रोज़ा बग़ैर रुख़सत(शरई इजाज़त),बग़ैर मर्ज़ के न रखा तो ज़माने भर का रोज़ा उसकी क़ज़ा नहीं हो सकता अगर्चे रख भी ले यानि वह फ़ज़ीलत जो रमज़ान में रखने की थी किसी तरह हासिल नहीं कर सकता। (बुख़ारी व अहमद व अबू दाऊद व तिर्मिज़ी व इब्ने माजा व दारमी, अबू हुरैरा से रावी)
- रसूलुल्लाह फ़रमाते हैं– मैं सो रहा था दो शख़्स हाज़िर हुए और मेरे बाज़ू पकड़ कर एक पहाड़ के पास ले गये और मुझसे कहा चढ़िये। मैंने कहा मुझमें इसकी ताक़त नहीं। उन्होंने कहा हम सहल कर देंगे। मैं चढ़ गया जब बीच पहाड़ पर पहुँचा तो सख़्त आवाज़ें सुनाई दीं, मैंने कहा ये कैसी आवाज़ें हैं। उन्होंने कहा यह जहन्नमियों की आवाज़ें हैं फिर मुझे आगे ले गये। मैंने एक क़ौम को देखा वो लोग उल्टे लटके हुए हैं और उनकी बाछें चीरी जा रही हैं जिससे ख़ून बहता है। मैंने कहा ये कौन लोग हैं कहा ये वो लोग हैं कि वक़्त से पहले रोज़ा इफ़्तार कर लेते हैं। (इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हब्बान अपनी सही में अबू उमामा बाहली से रावी)
रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों के बारे में ज़रूरी मसाईल – Roze ko todne wali chize
- खाने, पीने और जिमा (सोहबत) करने से रोज़ा टूट जाता है, जबकि रोज़ादार होना याद हो।
- हुक़्क़ा, सिगार, सिगरेट, बीड़ी और चरस वग़ैरा पीने से रोज़ा टूट जाता है चाहे हलक़ तक धुआँ पहुँचे या नहीं।
- पान या ख़ाली तम्बाकू खाने से भी रोज़ा टूट जाता है, चाहे पीक थूक दी हो।
- चीनी वग़ैरा ऐसी चीज़ें जो मुँह में रखने से घुल जाती हैं मुँह में रखी और थूक निगल लिया तो रोज़ा टूट गया।
- दाँतों के बीच कोई चीज़ चने के बराबर या ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी मगर मुँह से निकाल कर फिर खा ली तो रोज़ा टूट गया।
- दाँतों से ख़ून निकल कर हलक़ से नीचे उतरा और ख़ून थूक से ज़्यादा या बराबर था या कम था मगर उसका मज़ा हलक़ में महसूस हुआ तो इन सब सूरतों में रोज़ा टूट गया और अगर कम था और मज़ा भी महसूस नहीं हुआ तो नहीं।
- नाक के नथनों में दवा डालने से, कान में तेल डालने, ख़ुद चले जाने से या हुक़ना (enema) लेने से रोज़ा टूट जाता है, लेकिन पानी कान में चले जाने या डालने से रोज़ा नहीं टूटता।
- कुल्ली करते में बिना इरादा पानी हलक़ से उतर गया या नाक में पानी चढ़ाया और दिमाग़ को चढ़ गया तो रोज़ा टूट गया लेकिन अगर रोज़ा होना भूल गया हो तो नहीं टूटेगा चाहे जानबूझ कर हो।
- किसी ने रोज़ादार की तरफ़ कोई चीज़ फेंकी वह उसके हलक़ में चली गई तो रोज़ा टूट जाता है।
- सोते में पानी पी लिया या कुछ खा लिया या मुँह खुला था और पानी की बूँद या ओला हलक़ में चला गया तो रोज़ा टूट जाता है।
- थूक मुँह से बाहर आने के बाद दोबारा निगल लेने से रोज़ा टूट जाता है।
- मुँह में रंगीन डोरा रखने से थूक रंगीन हो गया उसे निगलने से रोज़ा टूट गया।
- आँसू मुँह में चला गया और निगल लिया अगर एक-दो बूंद है तो रोज़ा नहीं टूटा लेकिन अगर इतना ज़्यादा हो कि उसकी नमकीनी पूरे मुँह में महसूस हुई तो रोज़ा टूट जाता है। पसीने का भी यही हुक्म है।
- औरत का बोसा लिया, छुआ, चूमा या गले लगाया और इन्ज़ाल हो गया तो रोज़ा टूट गया और औरत के छूने से मर्द को इन्ज़ाल हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा।
- जानबूझ कर मुँह भर क़ै (उल्टी) करने से रोज़ा टूट जाता है अगर रोज़ादार होना याद हो और उससे कम की या जानबूझकर नहीं की तो रोज़ा नहीं टूटा।
- क़ै का मतलब है कि उल्टी में खाना, सफ़रा (पित्त) या ख़ून आये और अगर बलग़म आया तो रोज़ा नहीं टूटा।
रोज़ा तोड़ने का कफ़्फ़ारा – Roza Todne ka Kaffara
कोई शख़्स जिस पर रोज़ा रखना फ़र्ज़ हो रमज़ान का रोज़ा रखने के बाद जानबूझ कर कोई ऐसा काम करे जिससे रोज़ा टूट जाता है तो उस पर क़ज़ा के साथ कफ़्फ़ारा भी लाज़िम होता है।
क़ज़ा के साथ कफ़्फ़ारा कब लाज़िम होता है?
- जिमा (संभोग) करने से, चाहे मनी निकली हो या नहीं।
- औरत को छूने, बोसा लेने, साथ में लिटाने या शर्मगाहों (Private parts) को मिलाने की वजह से इन्ज़ाल होने यानि मनी निकलने पर।
- पानी पीने से।
- मज़े या ताक़त के लिये कुछ खाने-पीने से ।
- जिस जगह रोज़ा तोड़ने से कफ़्फ़ारा लाज़िम आता है उसमें शर्त यह है कि रात ही से रमज़ान के रोज़े की नीयत की हो अगर दिन में नीयत की और तोड़ दिया तो कफ़्फ़ारा लाज़िम नहीं जैसे कोई मुसाफ़िर सुबह सादिक़ (फ़ज्र) के बाद ज़हवा-ए-कुबरा (ज़वाल) से पहले अपने शहर को वापस आया और रोज़े की नीयत कर ली फिर तोड़ दिया तो कफ़्फ़ारा नहीं।
- कफ़्फ़ारा लाज़िम होने के लिए भर पेट खाना ज़रूरी नहीं थोड़ा सा खाने से भी वाजिब हो जायेगा।
- किसी शख़्स ने तेल लगाया, ग़ीबत की या कोई ऐसा काम किया कि जिससे रोज़ा नहीं टूटता मगर इसने यह गुमान कर लिया कि रोज़ा टूट गया या किसी आलिम ने भी रोज़ा टूटने का फ़तवा दे दिया और उसके बाद अब उसने कुछ खा-पी लिया जब भी कफ़्फ़ारा लाज़िम हो गया।
- थूक कर चाट गया या दूसरे का थूक निगला तो कफ़्फ़ारा नहीं मगर महबूब का लुआब (थूक) लज़्ज़त के लिये या किसी दीनी हस्ती जैसे पीर या आलिम का लुआब तबर्रुक के लिए निगला तो कफ़्फ़ारा लाज़िम है।
- जिन सूरतों में रोज़ा तोड़ने पर कफ़्फ़ारा लाज़िम नहीं उनमें यह शर्त है कि एक ही बार ऐसा हुआ हो और गुनाह का इरादा न हो वरना उसमें भी कफ़्फ़ारा है।
- कच्चा गोश्त चाहे मुर्दार का हो खाने से कफ़्फ़ारा लाज़िम हो जाता है।
- मिट्टी खाने की आदत की वजह से मिट्टी खाई तो कफ़्फ़ारा वाजिब है।
- नमक अगर थोड़ा खाया तो कफ़्फ़ारा वाजिब है ज़्यादा खाया तो नहीं।
- पेड़ के पत्ते या सब्ज़ियाँ जो खाई जाती हैं उनके खाने से कफ़्फ़ारा वाजिब है।
- कच्चे चावल बाजरा, मसूर, मूंग खाई तो कफ़्फ़ारा नहीं यही हुक्म कच्चे जौ का है और भुने हुए हों तो कफ़्फ़ारा लाज़िम है।
- तिल या तिल बराबर खाने की कोई चीज़ बाहर से मुँह में डाल कर बग़ैर चबाये निगल गया तो रोज़ा गया और कफ़्फ़ारा वाजिब।
- सहरी का वक़्त ख़त्म होने पर या भूलकर खाते में याद आने पर पर मुँह का निवाला निगल लिया तो दोनों सूरतों में कफ़्फ़ारा वाजिब है। लेकिन मुँह से निकाल कर फिर खाया हो तो सिर्फ़ क़ज़ा वाजिब होगी कफ़्फ़ारा नहीं।
रोज़ा तोड़ने का कफ़्फ़ारा – Roza todne ka Kaffara
- अगर हो सके तो एक बांदी या ग़ुलाम आज़ाद करें। या
- लगातार साठ रोज़े रखें, एक रोज़ा भी छूट गया तो दोबारा से साठ रोज़े रखने होंगे। पहले के रोज़े गिनती में नहीं आयेंगे चाहे बीमारी या किसी मजबूरी की वजह से ही छूटा हो। औरत को हैज़ की वजह से बीच में रोज़े छूट जायें तो पाक होने पर बाक़ी रोज़े रखकर साठ पूरे करने से कफ़्फ़ारा अदा हो जायेगा। या
- साठ मिसकीनों को भर पेट दोनों वक़्त खाना खिलायें ।
(नोटः- इस्लाम ही वह मज़हब है जिसने सबसे पहले ग़ुलाम प्रथा को ख़त्म करने की शुरूआत की। इस मक़सद को हासिल करने के लिये शरीयत के क़ानून बनाकर और दुनिया व आख़िरत के इनामात बताकर ग़ुलामी की ज़ंज़ीरों में जकड़े हुए लोगों को आज़ाद कराने के लिये लोगों को तरग़ीब दी यानि motivate किया। यहाँ पर क़सदन रोज़ा तोड़ने के जुर्माने के तौर पर ग़ुलाम या बांदी को आज़ाद करने का हुक्म फ़रमाने मे भी यही हिकमत है।)
अगर दो रोज़े तोड़े तो दोनों के लिए दो कफ़्फ़ारे दे (जबकि दोनों दो रमज़ान के हों), अगर दोनों रोज़े एक ही रमज़ान के हों और पहले का कफ़्फ़ारा अदा न किया हो तो एक ही कफ़्फ़ारा दोनों के लिए काफ़ी है।
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