किसी अपराध पर कितने समय में कार्यवाही करना अनिवार्य होता है? – Last time to report crime Hindi
Last time to report crime Hindi – आपराधिक और सिविल दोनों ही तरह की कार्यवाहियां प्रारंभ करने के लिए समय सीमा तय की गई है दंड प्रक्रिया संहिता में भी अपराधों का संज्ञान करने के लिए परिसीमा का प्रावधान किया गया है धारा 467 से लेकर धारा 473 तक परिसीमा काल से संबंधित उपबंध दिए गए हैं परिसीमा काल वह समय होता है जिसमें विधि द्वारा कार्यवाही शुरू करना अनिवार्य होता है परिसीमा काल की समाप्ति के बाद कानूनन कोई कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती और न्यायालय द्वारा उन शिकायतों का संज्ञान भी नहीं लिया जा सकता
दंड प्रक्रिया संहिता में किसी भी अपराध का संज्ञान परिसीमा काल की अवधि के पश्चात नहीं किया जाएगा यह परिसीमा काल केवल जुर्माने से दंडनीय अपराधों की दशा में 6 माह होगा और 1 वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध की दशा में 1 वर्ष का होगा और 1 वर्ष से अधिक किंतु 3 वर्ष से कम की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध का परिसीमा काल 3 वर्ष होगा(धारा 468)
किसी अपराधी के संबंध में परिसीमा काल अपराध किए जाने की तारीख को प्रारंभ होगा अथवा जहां अपराध की जानकारी किसी व्यथित व्यक्ति या पुलिस अधिकारी को नहीं है वहां उस दिन प्रारंभ होगा जिस दिन प्रथम बार ऐसे अपराध की जानकारी प्राप्त होती है अथवा एक स्थिति में जहां अपराध करने वाले व्यक्ति की जानकारी नहीं है तो जिस दिन प्रथम बार उस व्यक्ति की जानकारी प्राप्त होगी उस दिन से परिसीमा काल प्रारंभ होगा परिसीमा काल की गणना करने में उस दिन को छोड़ दिया जाएगा जिस दिन ऐसी अवधि की संगणना की जानी है(धारा 469)
कुछ दशाओं में समय का अपवर्जन किया जा सकेगा या परिसीमा काल के नियम को शीतलता प्रदान की जा सकेगी परिसीमा काल की गणना करने में उस समय को छोड़ दिया जाएगा जिसके दौरान कोई व्यक्ति अपराधी के विरुद्ध किसी अन्य अभियोजन में सम्यक रुप से तत्पर रहा है(धारा 470)
जिस दिन न्यायालय का अवकाश होगा उस दिन या उस तारीख का अपवर्जन किया जाएगा कहने का आशय यह है कि जिस दिन परिसीमा काल समाप्त हो रहा है उस दिन अगर किसी कारण से न्यायालय बंद है तो न्यायालय उस दिन संज्ञान ले सकता है जिस दिन पुनः न्यायालय खुलता है(धारा 471)
कुछ अपराध लगातार जारी रहने की प्रवृत्ति के होते हैं और लगातार चालू रहने के अपराध की दशा में नया परिसीमा काल उस समय के प्रत्येक क्षण से प्रारंभ होगा जिस के दौरान अपराध चालू रहता है( धारा 472)
कुछ परिस्थितियों में परिसीमा काल की अवधि का विस्तार किया जा सकता है यदि न्यायालय को यह विश्वास दिलाया जाए के विलंब के पीछे कोई ठोस कारण था या फिर न्याय हित में ऐसा विलंब क्षमा करना अनिवार्य है तो न्यायालय कुछ दशा में परिसीमा काल का विस्तारण कर सकता है और इस प्रकार हुए बिलम्ब को क्षमा करके संज्ञान ले सकता है(धारा 473)
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